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उद्योतकर वाक्य

उच्चारण: [ udeyotekr ]
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  • आचार्य उद्योतकर ने इसके इक्कीस प्रकार बताए हैं।
  • आचार्य उद्योतकर ने इसका संयुक्तिक पल्लवन किया है।
  • उद्योतकर के बाद अभाव पदार्थ के सुस्पष्ट वर्णन के प्रयास नैयायिकों ने किए।
  • इस वर्गीकरण का निश्चित अर्थ बताने में वास्त्यायन, उद्योतकर आदि असफल रहे हैं।
  • इस वर्गीकरण का निश्चित अर्थ बताने में वास्त्यायन, उद्योतकर आदि असफल रहे हैं।
  • गौतम के न्यायसूत्र पर वात्स्यायन ने भाष्य लिखा, उस भाष्य पर उद्योतकर ने वार्तिक लिखा।
  • उद्योतकर के मत में नि: श्रेयस के दो भेद हैं-अपर नि: श्रेयस तथा परनि: श्रेयस।
  • उद्योतकर के काल में नैयायिकों के सामने एक बड़ा प्रश्न था, बौद्ध तार्किकों की आलोचनाओं का जवाब देना।
  • उद्योतकर के वार्तिक पर वाचस्पतिमिश्र ने जो टीका लिखी, उसी का नाम ' न्यायवार्तिक / तात्पर्य / टीका ' है।
  • * इस संदर्भ में उद्योतकर का यह कथन भी स्मरणीय है कि परमात्मा नित्य ज्ञान का अधिकरण है जबकि जीवात्मा अनित्य ज्ञान का।
  • तदनुसार न्याय दर्शन के व्याख्याकारों में उद्योतकर ने, मीमांसक मत के आचार्य कुमारिल ने, जैन आचार्यां में आचार्य मल्लवादी ने दिङ्नाग के मन्तव्यों की समालोचना की।
  • ऐसे विद्वानों में आचार्य धर्मकीर्ति प्रमुख हैं, जिन्होंने दिङ्नाग के दार्शनिक मन्तव्यों का सुविशद विवेचन किया तथा उद्योतकर, कुमारिल आदि दार्शनिकों की जमकर समालोचना करके बौद्ध प्रमाणशास्त्र की भूमिका को सुदृढ़ बनाया।
  • उद्योतकर द्वारा रचित ‘न्यायवार्तिक ' नामक टीका प्रकाशित होने के पश्चात् भी न्यायशास्त्र पर बौद्धों का आघात बन्द नहीं हुआ, जिसके कारण ख्याति प्राप्त टीकाकार वाचस्पति मिश्र को न्यायवार्तिक के ऊपर भी एक टीका लिखनी पड़ी, जो
  • उद्योतकर द्वारा रचित ‘न्यायवार्तिक ' नामक टीका प्रकाशित होने के पश्चात् भी न्यायशास्त्र पर बौद्धों का आघात बन्द नहीं हुआ, जिसके कारण ख्याति प्राप्त टीकाकार वाचस्पति मिश्र को न्यायवार्तिक के ऊपर भी एक टीका लिखनी पड़ी, जो
  • बौद्ध नैयायिक दिङ्नाग आदि ने अपने तर्क से “न्यायसूत्र” और “न्यायभाष्य” की प्रभा को अभिभूत कर दिया था, किंतु उद्योतकर ने वार्तिक की रचना कर अपने तर्क के प्रखर प्रकाश से न्यायशास्त्र को उद्दीप्त बना अपना नाम अन्वर्थ कर दिया।
  • न्यायवार्त्तिक में आचार्य उद्योतकर ने भी इसकी पुष्टि में कहा है कि न्याय दर्शन में यदि संशय आदि चौदह पदार्थों का विवेचन नहीं होता तो यह चतुर्थी विद्या नहीं कहलाती, बल्कि त्रयी के अन्तर्गत अध्यात्मविद्या के रूप में प्रतिष्ठित होती।
  • उद्योतकर ने अपने न्यायवार्तिक में बौद्धों की प्रखर आलोचना की, लेकिन उसमें ज़्यादातर वितण्डा की झलक मिलती है, क्योंकि बौद्ध तर्क शास्त्र को जवाब देने के लिए नैयायिकों का तर्क शास्त्र उस समय उतना सामर्थ्य तथा सुघटित नहीं था।
  • न्यायसूत्रों के भाष्यकार वात्स्यायन और प्रशस्तपाद के मतों की दिङ्नाग ने युक्तिपूर्वक समालोचना की है तथा न्यायवार्तिकार उद्योतकर ने दिङ्नाग के मत की समालोचना दिङ्नाग की रचनाओं का अनुवाद चीनी भाषा में 557 से 569 ईस्वीय वर्षों में सम्पन्न हो गया था।
  • एक ओर शब्दाद्वैतवादी भर्तृहरि, प्रसिद्ध मीमांसक कुमारिल, न्यायनिष्णात नैयायिक उद्योतकर आदि वैदिक विद्वान जहाँ अपने-अपने पक्षों पर आरूढ़ थे, वहीं दूसरी ओर धर्मकीर्ति, उनके तर्कपटु शिष्य एवं समर्थ व्याख्याकार प्रज्ञाकर, धर्मोत्तर, कर्णकगोमि जैसे बौद्ध मनीषी भी अपनी मान्यताओं पर आग्रहबद्ध थे।
  • न्याय दर्शन से सम्बद्ध ' उद्योतकर ' का ' न्यायवार्तिक ', ' वाचस्पति मिश्र ' की ' तात्पर्यटीका ', ' जयन्तभट्ट ' की ' न्यायमञ्जरी ', ' उदयनाचार्य ' की ' न्याय-कुसुमाज्जलि ', ' गंगेश उपाध्याय ' की ' तत्त्वचिन्तामणि ' आदि ग्रन्थ अत्यन्त प्रशस्त एवं लोकप्रिय हैं।
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