इसकी प्रतिष्ठा चरम तीर्थंकर भगवान महावीर के 60 वर्ष बाद श्री केशी गणधर के प्रशिष्य व श्री स्वयंप्रभ सूरि के उपकेश गच्छीय ओसवंश के संस्थापक श्री रत्नप्रभ सूरिजी के कर कमलों से माघ शुक्ला पंचमी गुरूवार के दिन धनलग्न में होने का उल्लेख अनेक जैन शात्रों में मिलता है।