ऋभु वाक्य
उच्चारण: [ ribhu ]
"ऋभु" का अर्थउदाहरण वाक्य
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- वेद में इनको ऋभु:, विभ्वा और वाज नाम दिया गया है ।
- पोते ऋभु पर वे कविताऍं लिखते हैं तो नातिन पर भी दो कविताऍं लिखी हैं.
- उन्हें ऋभु कहा जाता था और वह अशविन (वैज्ञिानिकों) के साथ रह कर रथ, विमान, जलयान के आविष्कारों तथा निर्माण में अपना योगदान करते थे।
- ऋभु:, विभ्वा और वाज क्रमशः ज्ञानशक्ति, भावना शक्ति और क्रिया शक्ति के द्योतक हैं और गौ उस ब्राह्मी वाक् की प्रतीक है जो प्रत्येक जीवात्मा को मिली हुई है ।
- इस मण्डल में इन्द्र, अदिति, अग्निदेव, उषा, अश्विनी तथा ऋभु आदि देवताओं की स्तुतियाँ हैं और अनेक ज्ञान-विज्ञान, अध्यात्म आदि की बातें विस्तृत हैं, अनेक मन्त्रों में गौ-महिमा का वर्णन है।
- महोपनिषद के पंचम अध्याय में ज्ञान एवं अज्ञान की सात भूमिकाओं को व्यक्त किया गया है जिसे महर्षि ऋभु ने अपने संवादों द्वारा अपने पुत्र को बताया है वह कहते हैं हे पुत्र ज्ञान और अज्ञान के सात-सात चरण होते हैं.
- बना नहीं पाया ऐसा घर जिसमें रहते दिदिया-काका, अम्मा-दादा, बाबा ऋभु के साथ, जिसमें कई सदियाँ न सही, कम से कम एक सदी होती आँगन की तरह चौड़ी-खुली; जिस पर लगे कठचन्दन या बकौली के नीचे सब जमा होते भोजन के लिए;
- क्रियाशक्ति (वाज) इस गाय के लिए बाह्य जगत् से प्राणोदक लाती है, भावना शक्ति (विभ्वा) उसके मांस (स्थूल अभिव्यक्ति) का अलंकरण करती है और ज्ञान शक्ति (ऋभु:) अज्ञानरूप शकृत् को निकाल फेंकती है ।
- जाबालोपनिषद छठे भाग में अनेकों ऋषि मुनियों का उदाहरण दिया गया है जिसमें से, श्वेतकेतु, ऋभु, आरूणि, दुर्वासा, निदाघ, जड़भरत, दत्तात्रेय, संवर्तक तथा रैवतक आदि योग्य संन्यासी हुए यह सभी संन्यास के मह्त्व को दर्शाते हैं.
- वे विचारों का संयुक्त परिवार परिसर बनाने की कोशिश करते रहे, वे कलाओं का संयुक्त परिवार परिसर बनाने की कोशिश करते रहे और वे एक ऐसा संयुक्त घर बनाने की कोशिश करते रहे जिसमें रहते दिदिया-काका, अम्मा-दादा, बाबा / ऋभु के सा थ...
- प्रियव्रत के वंश का वर्णन द्वीपों और वर्षों का वर्णन पाताल और नरकों का कथन, सात स्वर्गों का निरूपण अलग अलग लक्षणों से युक्त सूर्यादि ग्रहों की गति का प्रतिपादन भरत चरित्र मुक्तिमार्ग निदर्शन तथा निदाघ और ऋभु का संवाद ये सब विषय द्वितीय अंश के अन्तर्गत कहे गये हैं।
- प्रियव्रत के वंश का वर्णन द्वीपों और वर्षों का वर्णन पाताल और नरकों का कथन, सात स्वर्गों का निरूपण अलग अलग लक्षणों से युक्त सूर्यादि ग्रहों की गति का प्रतिपादन भरत चरित्र मुक्तिमार्ग निदर्शन तथा निदाघ और ऋभु का संवाद ये सब विषय द्वितीय अंश के अन्तर्गत कहे गये हैं।
- यह अच् छी बात है कि यहॉं जीवन इतना तो मिला होता जैसी कातर गुहार नहीं है बल् कि एक ऐसे घर की ख् वाहिश है जिसमें दिदिया, काका, अम् मा, दादा, बाबा और ऋभु साथ साथ रहते. यानी कई पीढ़ियॉं एक साथ सॉंस लेतीं.
- इसी प्रकार संन्यास कर्म में भी मोह माया का त्याग ही संन्यासी को ब्रह्म के समीप ले जाने में सक्ष्म है और ब्रह्म को प्राप्त करने के पश्चात अन्य किसी वस्तु की चाह नहीं रहती मुक्ति को आधार प्राप्त हो जाता है, बडे़ बडे़ ऋषि-मुनियों ने परमहंस को प्राप्त किया है अरूणी, श्वेतकेतु, दुर्वासा, ऋभु, दत्तात्रेय आदि ऋषियों ने इस परम तत्व को जाना अपने मोह त्याग द्वारा वह श्रेष्ठ कहला ए.
- जिसमें जगत के स्वरूप, मोह माया की निंदा, संसार का अनित्य एवं दुखमय होना इन सभी को समझ पाने की जिज्ञासा प्रकट करते हुए ऋभु से अपने बारे में कहते हैं कि सृष्टि को मैं इस प्रकार समझ पाया हूँ की संसार में सभी कुछ नश्वर है मोह माया से त्याग ही मोक्ष का मार्ग निर्धारित करता है देह की नश्वरता उसके प्रति मुक्ति का भाव ही प्रमुख है और वैराग्य से तत्त्व जिज्ञासा का शमन किया जाता है.
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