चूँकि वेदों में नियतानुपूर्वी हैं एवं स्वर वर्णादि की निश्चित उच्चारण-विधि है, अत: बुद्धि, ज्ञान एवं स्वभाव में भिन्न रहने पर भी प्रत्येक मनुष्य उसे एकरूपतया गुरुमुखोच्चारणानुच्चारण विधि से अधिगत कर उसी तरह कर्म में प्रयोग करेगा, जिसके फलस्वरूप सभी को निश्चित फल की प्राप्ति होगी।