इनके शास्त्रीय नाम क्रमशः इस प्रकार हैं-बिल्व, श्रीपर्णी, पाटला, अग्निमन्थ, शालपर्णी, पृश्रिपर्णी, वार्ताकी, कण्टकारी और गोक्षुर।
3.
कण्टकारि द्वयम् ” किसी वैध्य ने भटकटैया (छोटी बड़ी) के स्थान पर कण्टकारी (जूता) का काढ़ा तैयार किया।
4.
2. गीली खाँसी के रोगी गिलोय, पीपल व कण्टकारी, तीनों को जौकुट (मोटा-मोटा) कूटकर शीशी में भर लें।
5.
व्याघ्री । कृष्णा । हंसपादी । मधुस्रवा । वृहती । एक ही औषधि है । कण्टकारी । कटेरी । क्षुद्रा । सिंही । निदिग्धिका । इनको एक ही समझना चाहिये । वृश्चिका । त्र्यमृता । काली । विष्घनी । सर्पदंता ।
6.
बराबर मात्रा में 14 से 28 मिलीलीटर नींबू का रस, पाषाण भेद, पाठा, एरण्ड, बेल का चूर्ण और कण्टकारी पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का काढ़ा बना लें, फिर इस काढ़े को 1 ग्राम सेंधानमक और 7 से 14 मिलीलीटर गौमूत्र (गाय का पेशाब) के साथ दिन में 3 बार लेना चाहिए।
वह कन्या जिसके घुटने चलने के समय आपस में टकराते हों और जिसे इसी कारण से विवाह के अयोग्य कहा गया हो:"रमेश सिंहिका से विवाह करना चाहता है पर उसके घरवाले मान नहीं रहे हैं" पर्याय: सिंहिका, कंटकारी,