| 1. | नगर नगर के कलस चारुता मय बन चमके।
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| 2. | दामाने आसमाँ से इस का कलस मिला दें।।
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| 3. | कंचन कलस, बिचित्र चित्र करि, रचि-पचि भवन बनायौ।
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| 4. | पहली कलस परठियौ, सझय ब्रह्मांण सिनान।।
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| 5. | सोवन कलस सुरै भरा साधू निंद्या सोई।।
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| 6. | लोगों ने मंदिर की छत और कलस ढा दिये।
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| 7. | कलस उनके थे उल्लसित से॥ 11 ॥
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| 8. | कू ट कलस के लिए ' दो
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| 9. | संस्कृत हिन्दी में कलस और कलश दोनों रूप प्रचलित हैं।
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| 10. | कंचन कलस बिचित्र संवारे, सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे।
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