कविवचनसुधा वाक्य
उच्चारण: [ kevivechensudhaa ]
उदाहरण वाक्य
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- उन्होंने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत काशी से निकलने वाली साहित्यिक पत्रिका ‘ कविवचनसुधा ‘ के संवाददाता के रूप में की।
- सारसुधानिधि और कविवचनसुधा की भाषा यद्यपि भावुकजनों के लिए आदर की वस्तु थी परंतु समय के उपयोग की न थी।
- इसी वर्ष उन्होंने ' कविवचनसुधा ' नाम की एक पत्रिका निकाली जिसमें पहले पुराने कवियों की कविताएँ छपा करती थीं पर पीछे गद्य लेख भी रहने लगे।
- २ ० मार्च १ ८ ७ ४ के ' कविवचनसुधा ' के ' होलिकांक ' में स्वदेशी आंदोलन के संदर्भ में जो ' प्रतिज्ञापत्र ' प्रकाशित हुआ था, उसका अविकल रूप इस प्रकार है।
- ' निज भाषा उन्नति ' की दृष्टि से उन्होंने १ ८ ६ ८ में ' कविवचनसुधा ' नामक पत्रिका निकाली, १ ८ ७ ३ ' हरिश्चंद्र मैगज़ीन ' और फिर ' बाला-बोधिनी ' नामक पत्रिकाएँ।
- उनकी टीकाटिप्पणियों से अधिकरी तक घबराते थे और “ कविवचनसुधा ” के “ पंच ” पर रुष्ट होकर काशी के मजिस्ट्रेट ने भारतेंदु के पत्रों को शिक्षा विभाग के लिए लेना भी बंद करा दिया था।
- उन्होंने १ ८ ६ ८ मे ' कविवचनसुधा ‘ नामक पत्रिका निकाली, १ ८ ७ ६ ' हरिश्चन्द्र मैगजीन ‘ और फिर ' बाल बोधिनी ` नामक पत्रिकाएँ निकालीं, साथ ही उनके समांतर साहित्यिक संस्थाएँ भी खड़ी कीं।
- “ कविवचनसुधा ” (1867), “ हरिश्चंद्र मैगजीन ” (1874), श्री हरिश्चंद्र चंद्रिका ” (1874), बालबोधिनी (स्त्रीजन की पत्रिक, 1874) के रूप में भारतेंदु ने इस दिशा में पथप्रदर्शन किया था।
- नीचे नवाय सिर देवपुरी लजानी इधर आधुनिककाल में ब्रजभाषा पद्य के लिए संस्कृत वृत्तों का व्यवहार पहले पहल स्वर्गीय पं. सरयूप्रसाद मिश्र ने रघुवंश महाकाव्य के अपने ' पद्यबद्ध भाषानुवाद ' में किया था जिसका प्रारंभिक अंश भारतेंदु की ' कविवचनसुधा ' में प्रकाशित हुआ था।
- 15 वर्ष की छोटी अवस्था में इन्होंने बनारस कॉलेज में एक डिबेटिंग क्लब जारी होने की सूचना, देखिए, किस उत्साह के साथ और कैसी अच्छी भाषा में कविवचनसुधा में दी थी-श्रीयुत् क.व. सुधा सम्पादकेषु महाशय, बड़े आनन्द की बात है कि कालिज के विद्यार्थियों ने भी कालिज में एक क्लब जारी किया है जिसका नाम स्टूडेंट डिबेटिंग क्लब रखा गया है।
- बंगदूत (1829), प्रजामित्र (1834), बनारस अखबार (1845), मार्तंड पंचभाषीय (1846), ज्ञानदीप (1846), मालवा अखबार (1849), जगद्दीप भास्कर (1849), सुधाकर (1850), साम्यदंड मार्तंड (1850), मजहरुलसरूर (1850), बुद्धिप्रकाश (1852), ग्वालियर गजेट (1853), समाचार सुधावर्षण (1854), दैनिक कलकत्ता, प्रजाहितैषी (1855), सर्वहितकारक (1855), सूरजप्रकाश (1861), जगलाभचिंतक (1861), सर्वोपकारक (1861), प्रजाहित (1861), लोकमित्र (1835), भारतखंडामृत (1864), तत्वबोधिनी पत्रिका (1865), ज्ञानप्रदायिनी पत्रिका (1866), सोमप्रकाश (1866), सत्यदीपक (1866), वृत्तांतविलास (1867), ज्ञानदीपक (1867), कविवचनसुधा (1867), धर्मप्रकाश (1867), विद्याविलास (1867), वृत्तांतदर्पण (1867), विद्यादर्श (1869), ब्रह्मज्ञानप्रकाश (1869), अलमोड़ा अखबार (1870), आगरा अखबार (1870), बुद्धिविलास (1870), हिंदू प्रकाश (1871), प्रयागदूत (1871), बुंदेलखंड अखबर (1871), प्रेमपत्र (1872), और बोधा समाचार (1872)।
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