दोनों के अपने-आने कारकीय या वैभक्तिक रूप चलते हैं।
2.
संज्ञाओं के कारकीय रूप परसर्गों के योग से बनते हैं-कर्ता-;
3.
संज्ञाओं के कारकीय रूप परसर्गों के योग से बनते हैं-कर्ता-;
4.
कुमाऊंनी भाषा में सभ कारकीय स्तिथियों में विकारीकारक रूप एक समान होते हैं
5.
इसी कारण से बँगला-असमियांॅ की भाँति मैथिलीमें भी सम्बन्ध कारकीय रुपों का अधिक व्यवहार होता है.
6.
सम्बन्ध कारकीय प्रत्यय-`र ' और उसके विस्तृत रुप-` रा' के अनन्तरभी अन्य कारकीय प्रत्यय या विभक्ति-चिन्ह लगाकर सर्वनाम-पदों विभिन्न रुपबनाये जाते हैं.
7.
सम्बन्ध कारकीय प्रत्यय-`र ' और उसके विस्तृत रुप-` रा' के अनन्तरभी अन्य कारकीय प्रत्यय या विभक्ति-चिन्ह लगाकर सर्वनाम-पदों विभिन्न रुपबनाये जाते हैं.
8.
विकारी रुप कुछ तो पदों की अन्तिम ध्वनियोंके परिवर्तनों से बनते हैं और कुछ सम्बन्ध कारकीय रुपों के योग से भी बनायेजाते हैं.
9.
प्राचीन मैथिली में `तै ', तु के विकारी रुपों से बने विभिन्न कारकीय रुप तो, तोए, तोर, तोरा, तोरें, तोहा, सम्बन्धकारकीय तोहर, तोहार, तोहारि, तोहरे, तोहारि रुप बनतेथे.
10.
एक वचन तिर्यक में भी ओकारांत व कुछ औकारान्तक संज्ञाएँ कारकीय स्तिथि में बदलती रहती हैं और बदला हुवा रूप एक वचनीय संज्ञाओं के बहुवचन अविकारी के समान होते हैं.