[वि.] किसी को धोखा देने के लिए बनाया या कहा गया, जैसे-कूटक आख्यान।
2.
में भ्रंशों का उन्नमन विपरीत दिशा में होता है फलस्वरूप दोनों भ्रंशों के बीच का भाग एक कूटक के समान ऊपर उठा दिखाई पड़ता है।
3.
इसके विपरीत भ्रंशोत्य (horst) में भ्रंशों का उन्नमन विपरीत दिशा में होता है फलस्वरूप दोनों भ्रंशों के बीच का भाग एक कूटक के समान ऊपर उठा दिखाई पड़ता है।
4.
कूटक (सं.) [सं-पु.] 1. दूसरों के साथ किया जाने वाला छल या कपट ; धोखा ; धूर्तता 2. हल का फाल 3. वेणी ; कबरी ; जूड़ा 4. बाहर की ओर निकला हुआ भाग ; उठान ; उभार।