न्याय की चालू अवधारणा अथवा केंद्राभिमुखी शासन में आज भी ऐसा ही होता है.
2.
मार्क टुली ने लिखा है-“यद्धपि नेहूरू ने केंद्राभिमुखी झुकाव को बनाए रखने पर बल दिया, लेकिन भाषा के मुद्दे पर उन्होंने राज्यों की ओर से पड़ने वाले दबाव के आगे घुटने टेक दिए।
3.
लोग जिस प्रमाण में स्वयं को प्रकृति से दूर करते हैं उतने ही ज्यादा दूर वे, इस केंद्र से होते चले जाते हैं, लेकिन इसके साथ ही एक केंद्राभिमुखी प्रभाव अपने आपको अभिव्यक्त करता है, और उनमें प्रकृति की गोद में वापस लौटने की इच्छा बलवती होने लगती है।