The soul is in matter like the rider on a carriage , being attended by the senses , who drive the carriage according to the rider 's intentions . आत्मा का प्रकृति में वही स्थान है जो किसी गाड़ी में कोचवान का होता है.जिसकी परिचारिकाएं इंद्रियां होती हैं , जो कोचवन की इच्छा के अनुसार गाड़ी को चलाती हैं .
परिभाषा
वह जो घोड़ागाड़ी चलाता या हाँकता हो :"कोचवान घोड़े को घोड़ागाड़ी में जोत रहा है" पर्याय: जोतवान,