क्रमांकुचन ग्रासनली की भित्ति के फैलने से भी प्रतिवर्ती रूप से पैदा होती है।
2.
क्रमांकुचन तरंग निचली ईसोफेगियल संकोचनी पेशी तक निगले हुए ग्रास से पहले ही पहुंच जाती है।
3.
जिह्वा का उपयोग भोजन के कणों को घुमा कर एक ग्रास बनाने में किया जाता है जिसके बाद वह ग्रास क्रमांकुचन की मदद से ग्रासनली में उतार दिया जाता है.
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जिह्वा का उपयोग भोजन के कणों को घुमा कर एक ग्रास बनाने में किया जाता है जिसके बाद वह ग्रास क्रमांकुचन की मदद से ग्रासनली में उतार दिया जाता है.
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इसमें ग्रसनी की निचली पेशियां संकुचित होकर क्रमांकुचन गतियों (peristalsis) की तरंगे शुरू कर देती है जो ग्रास को ग्रासनली में होकर आमाशय में पहुंचाने का कार्य करती है।
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जिह्वा का उपयोग भोजन के कणों को घुमा कर एक ग्रास बनाने में किया जाता है जिसके बाद वह ग्रास क्रमांकुचन की मदद से ग्रासनली में उतार दिया जाता है.
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में भूंख नही लगती है, और जाडों में खाना ज्यादा खाया जाता है कभी कभी भूंख से प्रभावित आमाशय की दीवारों में क्रमांकुचन इतना ज्यादा होता है कि हमे पीड़ा का अनुभव होता है इसे भूंख की टीस कहते है भोजन कि पर्याप्त मात्रा ग्रहण कर लेने के बाद जब आमाशय भर जाता है तो हाइपोथेलेमस कि मध्य रेखा में उपस्थित परित्रप्ती केन्द्र के नियंत्रण में हमे भूंख का आभास होना रुक जाता है
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में भूंख नही लगती है, और जाडों में खाना ज्यादा खाया जाता है कभी कभी भूंख से प्रभावित आमाशय की दीवारों में क्रमांकुचन इतना ज्यादा होता है कि हमे पीड़ा का अनुभव होता है इसे भूंख की टीस कहते है भोजन कि पर्याप्त मात्रा ग्रहण कर लेने के बाद जब आमाशय भर जाता है तो हाइपोथेलेमस कि मध्य रेखा में उपस्थित परित्रप्ती केन्द्र के नियंत्रण में हमे भूंख का आभास होना रुक जाता है ===================================================================== और अब “प्रश्नावली”