स्वायत्त तन्त्रिकाएँ हृदयपेशी एवं चिकनी पेशी संकुचन एवं ग्रन्थिल स्राव (Glandular sectetion) पैदा करने में भूमिका निभाती हैं।
2.
पलकों के प्रत्येक कुछ सेकण्डों पर झपकते (blinking) रहने से ग्रन्थिल स्राव (आंसू) नेत्रगोलक पर फैल जाते हैं।
3.
वाहिकामयी परत आगे की ओर के भाग (anterior portion) में मोटी होकर रोमक पिण्ड (ciliary body) बनाती है, जिसमें पेशीय एवं ग्रन्थिल ऊतक रहते हैं।
4.
इसे आज के अति व्यस्त, कुण्ठापूर्ण, ग्रन्थिल, विलासिता मूलक, वर्ग संघर्षमय, मात्र उद्योग-व्यवसाय केन्द्रित नगरीकरण से सामाजिक स्तर पर एवं प्रशासनिक स्तर पर भी बचाना अत्यावश्यक है ।