इस नली ने प्राय: रेडियो-आवृत्ति-विभव-प्रवर्धक में चतुर्ध्रुवी के उपयोग को विस्थापित कर दिया है।
3.
समान होती हैं परंतु चतुर्ध्रुवी में पट्टिक प्रतिरोध त्रिध्रुवी की अपेक्षा पर्याप्त अधिक होता है।
4.
समान होती हैं परंतु चतुर्ध्रुवी में पट्टिक प्रतिरोध र्त्रिध्रुवी की अपेक्षा पर्याप्त अधिक होता है।
5.
चतुर्ध्रुवी में त्रिधुवी के समान ही नियंत्रण ग्रिड (कंट्रोल ग्रिड) और ऋणाग्र स्थापित होते हैं।
6.
पंचध्रुवी तथा चतुर्ध्रुवी में कभी-कभी नियंत्रक ग्रिड को एक विशेष अभिप्राय से एक समान नहीं बनाते।
7.
इस विघ्नकारी अंश को चतुर्ध्रुवी में धनाग्र और ग्रिड के बीच में एक और ग्रिड लगाकर दूर किया जाता है।
8.
द्विध्रुवी, त्रिध्रुवी, चतुर्ध्रुवी तथा पंचध्रुवी के विभिन्न मेल जब एकही कक्ष में बनाए जाते हैं तो उन्हें बहु-इकाई-नली कहते हैं।
9.
दूसरे ग्रिडों का कार्य या तो आवरण का होता है या पट्टिक से गौण उत्सर्जन को दबाने का होता है, जैसा चतुर्ध्रुवी तथा पंचध्रुवी में होता है।
10.
चतुर्ध्रुवी तथा पंचध्रुवी बनाने के उपरांत यह बोध हुआ कि आवरण ग्रिड तथा पट्टिक के बीच के अंतरण आवेश (स्पेस चार्ज) का उपयोग गौण उत्सर्जन के बाधक के रूप में किया जा सकता है।