लेकिन इसलिए पैसे को मानवी इच्छाओं का चालकत्व नहीं मिल जाता।
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आज हमारा देश महात्मा जी के चालकत्व या नायकत्व के वश में हो गया है, कल वे नहीं रहेंगे, तब इस नायकत्व के इच्छुक लोग उसी तरह अकस्मात दिखाई देते रहेंगे, जिस तरह हमारे देश में धर्म-मोहितों के सामने नए-नए अवतार और गुरु जहाँ-तहाँ उठ खड़े होते हैं।