एक चिकित्साविज्ञानी होने के नाते मैं स्वयँ ही मानवीय सँरचना की बारीकियों और कार्यप्रणाली की पेंचीदगियों और नित खुलते इसके रहस्यों से उसी भाँति परिचित होता हूँ, जैसे ऋग्वेद-कालीन नासदीय सूक्तों के रचयिता हुये होंगे..
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एक चिकित्साविज्ञानी होने के नाते मैं स्वयँ ही मानवीय सँरचना की बारीकियों और कार्यप्रणाली की पेंचीदगियों और नित खुलते इसके रहस्यों से उसी भाँति परिचित होता हूँ, जैसे ऋग्वेद-कालीन नासदीय सूक्तों के रचयिता हुये होंगे..