चिरसहिष्णुता की वेदी पर, पुष्प बन कर चढ़ जाने को आज जीवित हूँ मैं, पिता की धूमिल छवि सुनाने कोशांत ह्रदय के दीप्त भाल का, फिर से मंद-मंद मुस्काने को प्रयत्न मात्र है,पित्री भाव की बलिहारी का; इस तुक्ष मुख से, आज कह जाने को अनुशासन, तेज है मुख...
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चिरसहिष्णुता की वेदी पर, पुष्प बन कर चढ़ जाने को आज जीवित हूँ मैं, पिता की धूमिल छवि सुनाने कोशांत ह्रदय के दीप्त भाल का, फिर से मंद-मंद मुस्काने को प्रयत्न मात्र है,पित्री भाव की बलिहारी का; इस तुक्ष मुख से, आज कह जाने को अनुशासन, तेज है मुख