नीची आँखों के आगे सामने से आते उत्सवी जन की मसालें चौंधा मारतीं।
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लेकिन अपनी चमक से दुनिया को चौंधा देने वाला ये शहर आज अंधेरे की गुमनामी झेलने को मजबूर है।
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बिल्डिंग के साथ एक बहुत बड़ा स्विम्मिंग पूल बना था जिस पर सूरज रोशनी पड़ने से तेज चौंधा निकल रहा था.
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अगर फिरोजाबाद की बात करें तो अपनी चमक से दुनिया को चौंधा देने वाला ये शहर आज अंधेरे की गुमनामी झेलने को मजबूर है।
5.
चौंधा मारती धूप के उस सन् नाटे में हड्डियों के हिलते-काँपते झुंड अचानक दिख जाते, जो न जाने किधर और कहाँ दबी-ढँकी घास की हरी-हरी पत्तियाँ ढूँढ़ते, सूखे और काले निचाट में थूथन लटकाए इधर-उधर डोल रहे थे।
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AMपहर अभी बीता ही हैपर चौंधा मार रही है धूपखड़े खड़े कुम्हला रहे हैं सजीले अशोक के पेड़उरूज पर आ पहुंचा है बैसाखसुन पड़ती है सड़क सेकिसी बच्चा कबाड़ी की संगीतमय पुकारगोया एक फ़रियाद है अज़ान सीएक फ़रियाद है एक फ़रियादकुछ थोड़ा और भरती मुझेअवसाद और अकेलेपन से-वीरेन डंगवाल
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पेप्पोर रद्दी पेप्पोरपहर अभी बीता ही हैपर चौंधा मार रही है धूपखड़े खड़े कुम्हला रहे हैं सजीले अशोक के पेड़उरूज पर आ पहुंचा है बैसाखसुन पड़ती है सड़क सेकिसी बच्चा कबाड़ी की संगीतमय पुकारगोया एक फ़रियाद है अज़ान सीएक फ़रियाद है एक फ़रियादकुछ थोड़ा और भरती मुझेअवसाद और अकेलेपन से-वीरेन डंगवाल
8.
जाने कितने दिन अपने में भीतर सिमटे बिता दिए | अभी हाल ही दो रिश्ते खोये हैं, टूटकर बिखर सा गया हूँ | किसी से कोई बोलचाल नहीं कहीं कोई संपर्क नहीं सब रीता सब सूना | ऐसा खोखलापन पहले अनुभूत नहीं किया कभी | कहीं कुछ नहीं मस्तिष्क में एक चौंधा सा और एक अनवरत सी
9.
पहर अभी बीता ही है पर चौंधा मार रही है धूप खड़े खड़े कुम्हला रहे हैं सजीले अशोक के पेड़ उरूज पर आ पहुंचा है बैसाख सुन पड़ती है सड़क से किसी बच्चा कबाड़ी की संगीतमय पुकार गोया एक फ़रियाद है अज़ान सी एक फ़रियाद है एक फ़रियाद कुछ थोड़ा और भरती मुझे अवसाद और अकेलेपन से
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पेप्पोर रद्दी पेप्पोर पहर अभी बीता ही है पर चौंधा मार रही है धूप खड़े खड़े कुम्हला रहे हैं सजीले अशोक के पेड़ उरूज पर आ पहुंचा है बैसाख सुन पड़ती है सड़क से किसी बच्चा कबाड़ी की संगीतमय पुकार गोया एक फ़रियाद है अज़ान सी एक फ़रियाद है एक फ़रियाद कुछ थोड़ा और भरती मुझे अवसाद और अकेलेपन से