| 1. | सरोजिनी साहू की कहानी: छिः!
|
| 2. | अनुकूल हैं तो बल्ले बल्ले, प्रतिकूल हो गए तो छिः!
|
| 3. | इतनी परेशानी क्योंउठा रहे हो? केशवन नंपूतिरीः छिः! मैं ऐसा नहीं कर सकता.
|
| 4. | पुरश्री: छिः छिः! वह तो निरा बछेड़ा है, और कोई काम नहीं, बस रात दिन अपने
|
| 5. | मुझे संदेह काहे कोहोगा? तुमने ही तो इसका इंतजाम किया है? केशवन नंपूतिरीः छिः! छिः! मैंने कोईइंतजाम नहीं किया है.
|
| 6. | मुझे संदेह काहे कोहोगा? तुमने ही तो इसका इंतजाम किया है? केशवन नंपूतिरीः छिः! छिः! मैंने कोईइंतजाम नहीं किया है.
|
| 7. | जब वो खाने लगी तो एक बिल्ली आई और उसने कहा, “छिः छिः! अपनी बेटी का मांस खा रही है”.
|
| 8. | " उसकी बात सुनकर वह विचलित हो गया," छिः छिः! ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें नकरो! इस संबंध में हमने पहले से ही सब-कुछ तय कर लिया है.
|
| 9. | छिः! छिः! उसने साड़ी के पल्लू को मुँह में दबाकर उबकाइयों को रोकने का प्रयास किया तथा वहाँ से तुरंत जाने के लिए तैयार हो गई ।
|