कोई कोई वैयाकरण कवर्ग मात्र को जिह्वामूलीय मानते हैं ।
2.
यानि ख़ जो जिह्वामूलीय कहलाता था)-यह तब प्रयोग होता है जब श्वास विसर्ग अः क्रमशः अघोष ओष्ठ्य और
3.
प्राचीन वैदिक संस्कृत में ' ख़' की ध्वनि पाई जाती थी और इसे जिह्वामूलीय की श्रेणी में डाला जाता था।
4.
प्राचीन वैदिक संस्कृत में ' ख़' की ध्वनि पाई जाती थी और इसे जिह्वामूलीय की श्रेणी में डाला जाता था।
5.
जिह्वामूलीय (सं.) [वि.] 1. (वर्ण) जिसका उच्चारण जिह्वा के मूल से किया जाता है 2.
6.
जिनमें स्वरित, उदात्त, अनुदात्त, प्लुत, गुंकार, जिह्वामूलीय तथा विभिन्न प्रकार के अनुस्वार तथा अनुनासिक एवं विसर्ग आदि स्वर चिह्न प्रमुख हैं।
7.
विशेष-शिक्षा के अनुसार ऐसे वर्ण अयोगवाह होते हैं और वे संज्ञा में दो हैं /?/ क और /?/ख । क और ख के पहले विसर्ग आने से जिह्वामूलीय हो जातै हैं ।
8.
नारद जी: मातृका क्या है ; उत्तर: मातृका 52 अक्षरों के होते है. प्रथम ॐ है.14 स्वर है.33 व्यजन है, अनुस्वार, विसर्ग, जिह्वामूलीय तथा उपध्मानीय. अ-कारज-ब्रह्म है. उ-कार-भगवान् विष्णु है.
9.
इसके पूर्व 1991 में भारत सरकार के भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards) द्वारा ISCII-1991 मानक IS 13194: 1991 के ANNEX-G के अन्तर्गत वेदिक के 31 चिह्नों / स्वरों (उदात्त, अनुदात्त्, स्वरित, कम्प, जिह्वामूलीय, पुष्पिका, गुंकार, कालबोधक आदि) का निर्धारण एवं मानकीकरण किया गया था, जिन्हें GIST CARD युक्त कम्प्युटरों में टाइप तथा संसाधित करने की भी सुविधा प्रदान की गई थी।
परिभाषा
जिह्वा के मूल से संबंधित:"क,ख आदि जिह्वामूलीय वर्ण हैं"