| 1. | केतुओं अर्थात पुच्छल तारों, उल्काओं, तारकपुंजों और ज्योतिष्क नीहारिकाओं
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| 2. | दिक् के ज्योतिष्क मंडलों से तथा उस कोने से
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| 3. | इस ज्योतिष्क नीहारिका के सिद्धांत द्वारा
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| 4. | स्वाभिमान ज्योतिष्क लोचनों में उतरा था,
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| 5. | जबकि विश्व के किसी एक भाग में घूमती हुई ज्योतिष्क नीहारिका
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| 6. | ताप उत्पन्न होता है, वही व्यक्त गतिशक्ति होकर फैली हुई ज्योतिष्क
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| 7. | ज्योतिष्क नीहारिका मंडल पहले अत्यंत वेग से घूमता हुआ गोला था।
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| 8. | वायु पदार्थ फैला दिखाई पड़ता है जिसे ज्योतिष्क नीहारिका कहते हैं।
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| 9. | पृथ्वी, ग्रह, उपग्रह, सूर्य इत्यादि सब, घूमती हुई ज्योतिष्क नीहारिका के
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| 10. | दूसरी ओर ज्योतिष्क पिंडों के भ्रमणचक्रों तक को ला सकते हैं।
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