डाॅ. हैंस जेनी के अनुसार सन् 1967 ईमें जब टोनोस्कोप नामक यंत्र पर ¬ का उच्चारण किया गया तो श्रीयंत्र की आकृ ति उभरकर सामने आने लगी।
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यह एक रहस्य का विषय है कि प्राचीन काल में जब टोनोस्कोप जैसा कोई उपकरण नहीं था, लोग ¬ की ध्वनि तरंगों की तस्वीर को अच्छी तरह से प्रस्तुत करने की क्षमता से युक्त थे।