ओह क्या बात थी उस शहर की वो भी उस समय जब लखनऊ की नफ़ासत पूरे शबाब पर थी, बडे और छोटे इमामबाडों के झूमरों की चमक दिन में बिना जले भी कयामत सरीखी हुआ करती थी, भुलभुलैय्या सच में खो जाने जैसा डरवना लगता था और वो बडे वाले रामलीला ग्राउंड में दशहरे का रावण दहन मेला, तोपखाना बाज़ार की रामलीला, दोस्त और सहपाठी संजय सुतार के पापा जी की लवली स्टुडियो, एक फ़ोटो या शायद ज्यादा भी अब तक मिलती हैं पुराने एलबमों में ।
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ओह क्या बात थी उस शहर की वो भी उस समय जब लखनऊ की नफ़ासत पूरे शबाब पर थी, बडे और छोटे इमामबाडों के झूमरों की चमक दिन में बिना जले भी कयामत सरीखी हुआ करती थी, भुलभुलैय्या सच में खो जाने जैसा डरवना लगता था और वो बडे वाले रामलीला ग्राउंड में दशहरे का रावण दहन मेला, तोपखाना बाज़ार की रामलीला, दोस्त और सहपाठी संजय सुतार के पापा जी की लवली स्टुडियो, एक फ़ोटो या शायद ज्यादा भी अब तक मिलती हैं पुराने एलबमों में ।