साथ ही श्रीमती ताराबेन रतनलालजी दयरा के प्रथम उधान तप के उपलक्ष में चौवीसी का आयोजन किया जाएगा।
2.
एक लंबा दयरा सा बन गया अचानक जोर जोर से दे रहा था ये दिल सिने पर दस्तक गुज़र गई वो शाम हम कुछ भी ना कहेना पाए निगालेंगे इन अरमानों को अब रातों के साये
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आज जाने से पहेले उसने भी कुछ कहा था गम का थोड़ा सा असर उस पेर भी हो रहा था चुप होने से पहेले उन के लब हिले थे उस खामोशी के नगमे हम ने भी सुने थे एक लंबा दयरा सा बन गया अचानक जोर जोर से दे रहा था ये दिल सिने पर दस्तक गुज़र गई वो शाम हम कुछ भी ना कहेना
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आज जाने से पहेले उसने भी कुछ कहा था गम का थोड़ा सा असर उस पेर भी हो रहा था चुप होने से पहेले उन के लब हिले थे उस खामोशी के नगमे हम ने भी सुने थे एक लंबा दयरा सा बन गया अचानक जोर जोर से दे रहा था ये दिल सिने पर दस्तक गुज़र गई वो शाम हम कुछ भी ना कहेना...