हर साहित्यकार गप्पी होता है.... अहदी भी होता है और दांभिक भी।
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हर साहित्यकार गप्पी होता है.... अहदी भी होता है और दांभिक भी. यह अहदीपन और...
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पहचानने वाले लोग कपटी, मक् कार, दांभिक से सरल सीधे सच् चे भक् त को चट्ट पहचान लेते हैं।
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दांभिक, झूठे, लुच्चे, स्वार्थी और भोगलंपट लोग हमारे स्वजन हो ही नहीं सकते, भले ही वे मामा, मौसी या फूखी हों।
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वस्तुतः ऎसे व्यक्ति दांभिक अहमन्यता से ग्रसित हो स्वयं को प्रश्नचिन्ह बना ड़ालते हैं और उत्तर से रहित जीवन क्लेषयुक्त ही रहता है।
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हर साहित्यकार गप्पी होता है.... अहदी भी होता है और दांभिक भी. यह अहदीपन और दंभ उसे ऊँचा उठाते हैं.
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इसलिए इस विषय में जो चालाक और दांभिक है उन लोगों में छल और धोखे से दूसरों को नीच बनाने के सिवाय और कोई तत्व नहीं हैं, क्योंकि कोई भी इससे बचा नहीं हैं।