वे उसी में रम चुके हैं, पग चुके हैं और उसी विचारधारा में डूबते उतारते हैं और अब तो स्थिति यह है कि-डूबना ही इष्ट हो जब, तो सहारा कौन मांगे? प्यार जब मझधार से हो, तो किनारा कौन मांगे? मेरे अपने वासुदेव चन्द्राकर के स्वस्थ सुखी एवं दीर्ण जीवन के लिए असीम प्यार एवं अशेष शुभकामनायें समर्पित हैं।