गुरुदक्षिणा दिये बिना गुरुदेव से किया हुआ पवित्र शास्त्रों का अभ्यास यह समय का दुर्व्यय मात्र है।
2.
इनकी पत्तियों कन्दों को आग पर पकाकर खाना उनके सुप्रिय स्वाद को मारना और पैसा का दुर्व्यय करना है।
3.
गुरुदेव की सेवा किये बिना किया हुआ तप, तीर्थाटन और शास्त्रों का अध्ययन यह समय का दुर्व्यय मात्र है।
4.
और इस प्रकार विवश बना देने वाले निर्मूल्य विद्वानों की श्रेणियां तैयार करने वाले शिक्षण में धन का दुर्व्यय ही किया जा रहा है.............
5.
नतीजे के बारे में, वस्तुओं के दुर्व्यय के बारे में, हिंसा के बारे में, और अपनी शक्ति के बारे में, कुछ सोचे बिना मनुष्य, अज्ञान से जो कार्य का आरंभ करता है, वह तामस कर्म है ।'