समाज कैसे निरपेक्ष रह सकता है? जो मारे जा रहे हैं, वे भी आदिवासी हैं, गरीब हैं, सिपाही हैं, अनजान देश-भाई हैं।
2.
मैं आप सबका ध्यान इस भयावह बात की ओर विशेषतः खींचना चाहता हूँ कि जो देशभाषा को विदेशी मान सकते हैं, वे देश-भाई को भी विदेशी मान सकते हैं और अपने भाई का गला काटने के लिए विदेशियों को भी आमन्त्रित कर सकते हैं।
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टिपिकल हिन्दू ' के रूप में प्रेमचंद कहते हैं, ‘ अव्वल तो अपने दिल से यह ख्याल निकाल देना चाहिए कि हमारे देश-भाई अब भी हम पर हुकूमत का इरादा रखते हैं क्योंकि हिन्दू संख्या में, धन-दौलत में, शक्ति में मुसलमानों में किसी तरह से कम नहीं हैं।
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शासन में मुसलमानों की भागीदारी के नाम पर एक ' टिपिकल हिन्दू' के रूप में प्रेमचंद कहते हैं, 'अव्वल तो अपने दिल से यह ख्याल निकाल देना चाहिए कि हमारे देश-भाई अब भी हम पर हुकूमत का इरादा रखते हैं क्योंकि हिन्दू संख्या में, धन-दौलत में, शक्ति में मुसलमानों में किसी तरह से कम नहीं हैं।
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शासन में मुसलमानों की भागीदारी के नाम पर एक ‘टिपिकल हिन्दू ' के रूप में प्रेमचंद कहते हैं, ‘अव्वल तो अपने दिल से यह ख्याल निकाल देना चाहिए कि हमारे देश-भाई अब भी हम पर हुकूमत का इरादा रखते हैं क्योंकि हिन्दू संख्या में, धन-दौलत में, शक्ति में मुसलमानों में किसी तरह से कम नहीं हैं।