प्राकृत जल वह आवेग-भरा है, द्युतिमान् मणियों की अग्नियों पर से फिसल-फिसलकर बहती लहरें, लहरों के तल में से फूटती हैं किरनें रत्नों की रंगीन रूपों की आभा फूट निकलती खोह की बेडौल भीतें हैं झिलमिल!!
2.
डूबता हूँ मैं किसी भीतरी सोच में-हृदय के थाले में रक्त का तालाब, रक्त में डूबी हैं द्युतिमान् मणियाँ, रुधिर से फूट रहीं लाल-लाल किरणें, अनुभव-रक्त में डूबे हैं संकल्प, और ये संकल्प चलते हैं साथ-साथ।