द्वयर्थक वाक्य
उच्चारण: [ devyerthek ]
"द्वयर्थक" अंग्रेज़ी मेंउदाहरण वाक्य
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- द्वयर्थक या संदेह युक्त उत्तर दे कर सच्ची बात छिपाना
- याचिका निष्फल और द्वयर्थक है और निरस्त होने योगय हैं।
- दरअसल कुछ वरिष्ठ नेतों ने अस्पष्ट और द्वयर्थक रूप से सोचा और
- तंत्र की द्वयर्थक भाषा और ही खतरनाक है एक प्रसिद्ध श्लोक है-
- संध्या भाषा, द्वयर्थक भाषा, कुतर्क ये सब इसी श्रेणी में आते हैं।
- इस प्रकार प्रतिकर याचिका द्वयर्थक और निष्फल होने केकारण निरस्त किये जाने योग्य है।
- काम्य अनुष्ठानों की भाषा द्वयर्थक होती है और मन की ग्रंथियों के अनुरूप उनकी रचना रहती है।
- बौद्ध तंत्र में इसे क्षोमा पटल कहते हैं जिसमें उन द्वयर्थक शब्दों का वास्तविक अर्थ लिखा हुआ रहता है।
- दरअसल कुछ वरिष्ठ नेतों ने अस्पष्ट और द्वयर्थक रूप से सोचा और विलय के बारे में संदिग्ध बयानबाजी की।
- इस संबंध में वे तथाकथित द्वयर्थक चित्र उल्लेखनीय हैं, जिन्हें कभी आकृति माना जाता है और कभी पृष्ठभूमि (देखें साथ का चित्र) ।
- ' ' फ्रैंकोइस द बोउवार जिसके जीवन का मैं प्रशंसक हूँ ''-यह एक श्लिष् ट और द्वयर्थक प्रशंसा थी, लेकिन मामन ने इससे बहुत गौरवान्वित अनुभव किया।
- अपभं्रश का सिद्ध साहित्य ही नहीं बौद्ध एवं वैदिक तंत्रों में भी ऐसी संध्या भाषा का खूब प्रयोग हुआ फिर भी वहाँ बहुत हद तक ऐसे द्वयर्थक और अनेर्काथक प्रयोग मर्यादित हैं।
- दूसरे प्रकार की सूचनाएँ-वे हैं जो द्वयर्थक भाषा में इस प्रकार लिखी गई हैं, जिससे उसकी कोई नकल न कर सके और उस विद्या के असली जानकारों की मर्जी और उन्हें उसके लिये भुगतान किये बगैर लाभ न उठा सके।
- इसमें जो बातें कही जाती हैं, वे द्वयर्थक या श्लिष्ट होती है, पर उन दोनों अर्थों में से जो प्रधान होता है, उससे मुकरकर दूसरे अर्थ को उसी छन्द में स्वीकार किया जाता है, किन्तु यह स्वीकारोक्ति वास्तविक नहीं होती।
- जहाँ द्वयर्थक शब्दों के कारण भ्रम होने की संभावना है, वहाँ बहुतेरे स्थलों पर स्वयं वेदभगवान ने ही अर्थ का स्पस्थिकरण कर दिया है-“ धाना धेनुरभवद वत्सोsस्यास्तिल: ” (अथर्ववेद १ ८ / ४ / ३ २)-अर्थात धान ही धेनु है और तिल ही उसका बछडा हुआ है.
- जहाँ द्वयर्थक शब्दों के कारण भ्रम होने की संभावना है, वहाँ बहुतेरे स्थलों पर स्वयं वेदभगवान ने ही अर्थ का स्पस्थिकरण कर दिया है-“ धाना धेनुरभवद वत्सोsस्यास्तिल: ” (अथर्ववेद १ ८ / ४ / ३ २)-अर्थात धान ही धेनु है और तिल ही उसका बछडा हुआ है.
- इस पद्यति की सबसे बड़ी खामी यह है कि यह गलत सकारात्मक उच्च दर अथवा वर्तमान समय में उपलब्ध मीटरों में अशुद्धता के कारण द्वयर्थक स्तरों का दिग्दर्शन: चिकित्सक और रोगी दानों के लिए ही सटीक सामान की जरुरत है कि कौन सा मीटर का उपयोग कर निराशाजनक और अनिर्णायक परिमाणों से बचा जा सकता है.
- अतः उक्त द्वयर्थक गीत में एक ओर कृषक का पुरवइया से समृद्धि की वर्षा करनेवाले आर्दा नक्षत्र के मेघ को आगमन संदेश देने का आग्रह है, तो दूसरी ओर आनंद, शीतलता देने वाले बालम के प्रतीक मेघ से संदेश देने का आग्रह करती हुई नायिका पुरवइया हवा से कहती है, “ बहिन जाकर उनसे कहना, शीघ्र आकर मेरी व्यथा दूर करें।
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