पर्विल अरुणिका, द्विपार्श्विक विदर लसीकापर्व विकृति और संधिशूल के संयोजन को लफ़ग्रेन सिंड्रोम कहा जाता है.
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पर्विल अरुणिका, द्विपार्श्विक विदर लसीकापर्व विकृति और संधिशूल के संयोजन को लफ़ग्रेन सिंड्रोम कहा जाता है.
4.
सभी देहगुहाधारियों की भाँति शूलचर्मों की आधारभूत संरचना द्विपार्श्विक है और अरीय सममिति तो गौण गुण है।
5.
सममिति के प्रकारों के अध्ययन से पता चलता है कि शीर्षप्राधान्य (सेफ़लाइज़ेशन), जो अग्र तंत्रिकाओं तथा संवेदी रचनाओं की सघनता के कारण सिर का उत्तरोत्तर भेदकरण है, शरीर की द्विपार्श्विक सममिति के साथ साथ होता है।
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सममिति के प्रकारों के अध्ययन से पता चलता है कि शीर्षप्राधान्य (सेफ़लाइज़ेशन), जो अग्र तंत्रिकाओं तथा संवेदी रचनाओं की सघनता के कारण सिर का उत्तरोत्तर भेदकरण है, शरीर की द्विपार्श्विक सममिति के साथ साथ होता है।
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सममिति के प्रकारों के अध्ययन से पता चलता है कि शीर्षप्राधान्य (सेफ़लाइज़ेशन), जो अग्र तंत्रिकाओं तथा संवेदी रचनाओं की सघनता के कारण सिर का उत्तरोत्तर भेदकरण है, शरीर की द्विपार्श्विक सममिति के साथ साथ होता है।