| 1. | वैदिक चातुर्मास्य द्विविध है-स्वतंत्र और राजसूयांतर्गत।
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| 2. | ये आयतन द्विविध हैं-चक्षुरिद्रियादिछःअध्यात्मिक याआंतरिक तथा रुपादि छः बाह्य.
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| 3. | क्योंकि द्विविध इन्द्रियों से ही सबकी रक्षा होती है।
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| 4. | अव्याकृत चित्त द्विविध है विपाक और क्रिया।
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| 5. | ब्राह्मणा द्विविधा राजन धर्मश् च द्विविध: स्मृत: ।
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| 6. | ऐसे में उसे द्विविध लाभ थे।
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| 7. | वे स्वभावोक्ति और प्रौढ़ोक्ति द्विविध निर्माण के निष्णात शिल्पी हैं।
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| 8. | ' ' सूर कहा कहे द्विविध आँधरो बिना मोल को चेरो।
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| 9. | भक्ति साधन तथा साध्य द्विविध है।
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| 10. | वह भी प्रतिसंख्यानिरोध और अप्रतिसंख्यानिरोध के भेद से द्विविध हैं।
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