द्वैताद्वैतवाद वाक्य
उच्चारण: [ devaitaadevaitevaad ]
उदाहरण वाक्य
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- इसके साथ ही द्वैताद्वैतवाद (सनकादि सम्प्रदाय) के संस्थापक
- इस संप्रदाय का सिद्धान्त ' द्वैताद्वैतवाद ' कहलाता है।
- इनके मत को द्वैताद्वैतवाद कहते हैं।
- भक्ति के प्रचार के लिए अपने द्वैताद्वैतवाद पर आधारित ' सनकादि-सम्प्रदाय' इन्होंने स्थापित किया।
- निम्बार्क के द्वैताद्वैतवाद के अनुसार ब्रह्म, जीव और जगत् में आश्रयाश्रयिभाव सम्बन्ध है।
- भक्ति के प्रचार के लिए अपने द्वैताद्वैतवाद पर आधारित ' सनकादि-सम्प्रदाय ' इन्होंने स्थापित किया।
- द्वैताद्वैतवाद या भेदाभेदवाद के प्रवर्तक आचार्य निम्बार्क के विषय में सामान्यतया यह माना जाता है कि उनका जन्म 1250 ई. में हुआ था।
- गीताकी टीकाओंको भी देखें तो उनमें अद्वैतवाद, द्वैतवाद, विशिष्ठाद्वैतवाद, द्वैताद्वैतवाद, शुद्धाद्वैतवाद, अचिन्त्यभेदाभेदवाद आदि अनेक मतोंको लेकर टीकाएँ की गयी हैं ।
- रसखान ने कृष्ण भक्ति दर्शन में वल्लभाचार्य जी का शुद्धाद्वैतवाद, निंबार्क का द्वैताद्वैतवाद, मध्वाचार्य का द्वैतवाद अथवा चैतन्य महाप्रभु के अचिंत्य भेदाभेद किसी का भी अनुसरण नहीं किया।
- द्वैताद्वैतवाद की स्थापना करते हुए निम्बार्काचार्य ने कहा कि जिस प्रकार पेड़ भी सत्य है तथा शाखाएं भी सत्य हैं, उनका अलग अस्तित्वांकन दृष्टिभेद के कारण से होता है-ठीक उसी प्रकार की स्थिति जगत, जीव और ब्रह्म की है।
- द्वैताद्वैतवाद की स्थापना करते हुए निम्बार्काचार्य ने कहा कि जिस प्रकार पेड़ भी सत्य है तथा शाखाएं भी सत्य हैं, उनका अलग अस्तित्वांकन दृष्टिभेद के कारण से होता है-ठीक उसी प्रकार की स्थिति जगत, जीव और ब्रह्म की है।
- इसके साथ ही द्वैताद्वैतवाद (सनकादि सम्प्रदाय) के संस्थापक निम्बार्काचार्य ने विष्णु के दूसरे अवतार कृष्ण की प्रतिष्ठा विष्णु के स्थान पर की तथा लक्ष्मी के स्थान पर राधा को रख कर देश के पूर्व भाग में प्रचलित कृष्ण-राधा (जयदेव, विद्यापति) की प्रेम कथाओं को नवीन रूप एवं उत्साह प्रदान किया।
- इसके साथ ही द्वैताद्वैतवाद (सनकादि सम्प्रदाय) के संस्थापक निम्बार्काचार्य ने विष्णु के दूसरे अवतार कृष्ण की प्रतिष्ठा विष्णु के स्थान पर की तथा लक्ष्मी के स्थान पर राधा को रख कर देश के पूर्व भाग में प्रचलित कृष्ण-राधा (जयदेव, विद्यापति) की प्रेम कथाओं को नवीन रूप एवं उत्साह प्रदान किया।
- इसके साथ ही द्वैताद्वैतवाद (सनकादि सम्प्रदाय) के संस्थापक निम्बार्काचार्य ने विष्णु के दूसरे अवतार कृष्ण की प्रतिष्ठा विष्णु के स्थान पर की तथा लक्ष्मी के स्थान पर राधा को रख कर देश के पूर्व भाग में प्रचलित कृष्ण-राधा (जयदेव, विद्यापति) की प्रेम कथाओं को नवीन रूप एवं उत्साह प्रदान किया।
- इसके साथ ही द्वैताद्वैतवाद (सनकादि सम्प्रदाय) के संस्थापक निम्बार्काचार्य ने विष्णु के दूसरे अवतार कृष्ण की प्रतिष्ठा विष्णु के स्थान पर की तथा लक्ष्मी के स्थान पर राधा को रख कर देश के पूर्व भाग में प्रचलित कृष्ण-राधा (जयदेव, विद्यापती) की प्रेम कथाओं को नवीन रूप एवं उत्साह प्रदान किया।
- भारतीय तत्व चिंतन की परस्पर विरोधी दिखने वाली मान्यताएं (अद्वैतवाद, द्वैतवाद और द्वैताद्वैतवाद) जिनका उपनिषदों में असामंजस्य मिलता है, समन्वित करके उनके और पाश् चात्य तत्व चिंतन के मध्य एक सेतु बांधना जरूरी था-और उसका साधन था हिमालय के प्राचीनतम दर्शन की सृष्टियों एवं आधुनिक विज्ञान के विकृत सिद्धांतों का तुलनात्मक अध्ययन. यह अनुशीलन करना-विश् वधर्म का यह संदेश लिपिबद्ध करना-वह स्वयं चाहते थे.
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