वस्तुत: बहुत सी भाषाओं के लिये धात्वंश आवश्यक नहीं।
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वस्तुत: बहुत सी भाषाओं के लिये धात्वंश आवश्यक नहीं।
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व्याकरण शास्त्र का नामकरण एवं उनकी परिभाषा इसी प्रक्रिया को ध्यान में रख कर की गई है यथा, शब्दानुशसन (महर्षि पतंजलि एवं आचार्य हेमचंद्र) तथा “व्याक्रियंते विविच्यंते शब्दा: अनेन इति व्याकरणम्।” पाश्चात्य विद्वान् धात्वंश को आवश्यक नहीं मानते, वे आधार रूपांशों (base-elements) को नाम एवं आख्यात् दोनों के लिये अलग अलग स्वीकार करते हैं।