बिमल रॉय की दो बीघा जमीन भारत में नव-यथार्थवाद का मील का पत्थर है।
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दो बीघा कामीन एक सीधी-सादी कम बजट की फिल्म थी, जिसमें प्राय: इतालवी नव-यथार्थवाद का प्रवाश दिखता है।
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दो बीघा ज़मीन उस ज़माने की पहली फिल्म थी, जिसमें इटालियन नव-यथार्थवाद की झलक तो थी ही, इसका कारोबार भी उम्दा रहा था।
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दो बीघा ज़मीन की बात करें, तो उस ज़माने की यह पहली फिल्म थी, जिसमें इटालियन नव-यथार्थवाद की झलक तो थी ही, इसका कारोबार भी उम्दाा रहा था।
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जहां तक मेरे सिनेमा में इतालवी नव-यथार्थवाद का सवाल है तो जो कुछ भी बहुत कलात्मक तरीके से समाज के सच को दिखाता है वह अपना नव-यथार्थवाद खुद खोज लेगा.
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जहां तक मेरे सिनेमा में इतालवी नव-यथार्थवाद का सवाल है तो जो कुछ भी बहुत कलात्मक तरीके से समाज के सच को दिखाता है वह अपना नव-यथार्थवाद खुद खोज लेगा.
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दरअसल मणि कौल सिनेमा में यथार्थवाद और नव-यथार्थवाद दोनों को विखंडित करके उसे एक कला अनुभव में बदलना चाहते थे जबकि हमारा प्रचलित सिनेमा एक आदर्शपरक यथार्थवाद के वर्णन से बाहर नहीं आया था।