गुज़री सदी में उर्दू शाइरी का नाज़ो-अंदाज़ बदलने वालों में फैज़ का नाम प्रमुख है.
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गुज़री सदी में उर्दू शाइरी का नाज़ो-अंदाज़ बदलने वालों में फैज़ का नाम प्रमुख है.
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कहानियों और फिल्मों में भी नाज़ो-अंदाज़ वाले स्त्री पात्रों के चरित्र को उभारने के लिए इस विशेषण का प्रयोग होता रहा है।
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कहानियों और फिल्मों में भी नाज़ो-अंदाज़ वाले स्त्री पात्रों के चरित्र को उभारने के लिए इस विशेषण का प्रयोग होता रहा है।
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प्रेमी सब कुछ निछावर करने पर आमादा रहता है फिर भी माशूक के लिए नाज़ो-अंदाज़ और नखरा दिखाना लाज़मी है क्योंकि मंजिल यूं ही हासिल नहीं होतीं।
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प्रेमी सब कुछ निछावर करने पर आमादा रहता है फिर भी माशूक के लिए नाज़ो-अंदाज़ और नखरा दिखाना लाज़मी है क्योंकि मंजिल यूं ही हासिल नहीं होतीं।
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जब वे अपने देखे-भाले लोगों की आदतों, बोली-बानी, रंग-ढंग, नाज़ो-अंदाज़, सुख-दुख, उनकी मस्ती और यातना के क्षणों को सामने रख कर कहानी लिखते हैं तो कोई बड़ा सत्य कह जाने की सजगता के साथ नहीं लिखते.