वे निर्वासित, विस्थापित और नि:संग अपराधियों की तरह होंगे।
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वे निर्वासित, विस्थापित और नि:संग अपराधियों की तरह होंगे।
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पहुँचकर अनमनी और उदास तो थी ही, एक नि:संग सी व्यर्थता और
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दोनों ही इस बात के प्रतीक हैं कि जो ज्ञान की आराधना करता है, वह धीरे-धीरे धवलबुद्धि, नीर-क्षीर विवेकी तथा नि:संग होता जाता है।
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..कहीं अवसाद है, ढेर सारी बातें-जाने इस पर लेख दे भी पाऊँगा या नही? अच्छा है प्रवीण जी-इतने नि:संग हो लिख पाना!
6.
एकाकी, नि:संग भटकता हुआ विपिन निर्जन में जा पहुँचा मैं वहाँ जहाँ पर वधूसरा बहती है, च्यवनाश्रम के पास, पुलोमा की दृगम्बु-धारा-सी. उर्वशी च्यवनाश्रम! हा! हंत! अपाले, मुझे घूँट भर जल दे.