अतिउल्वोदकता या प्रागर्भाक्षेपक के निदान होते ही रोगिणीको निदानशाला में भर्ती कर लेना चाहिए.
2.
निदानशाला के लिये संचार के तीन स्वरूप पहलु हैं: घटिया छंदशास्र, स्पर्शरेखा और परिस्थितिजन्य भाषण, और चिह्नित वर्बोसिटी.
3.
मध्य सगर्भता काल में कुछ दिनों के लिए मधुमेह की रोगिणियोंको निदानशाला मे रखकर भोजन तथा इनसुलिन आवश्यकता का पुनः समायोजन (रे-अड्जुस्ट्मेन्ट्) करके उनकी मधुमेह दशा को स्थिर (श्टबिलिसटिओन्) कर लेना चाहिए.