| 1. | स्थिति और उपाधि से रहित निरुपाधि है ।
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| 2. | धातुबाद निरुपाधि बर सद्गुरू लाभ सुमीत ।
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| 3. | वह निर्गुण, निरुपाधि, निरंजन और अविनाशी हैं।
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| 4. | स्थिति और उपाधि से परे निरुपाधि का ज्ञान नहीं होता ।
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| 5. | वेदांत दर्शन निर्विकल्प, निरुपाधि और निर्विकार ब्रह्म को ही सत्य मानता है।
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| 6. | वेदांत दर्शन निर्विकल्प, निरुपाधि और निर्विकार ब्रह्म को ही सत्य मानता है।
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| 7. | बालक बिलोकि, बलि बारेतें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये ।
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| 8. | शंकर ने केवल निरुपाधि निर्गुण ब्रह्म की ही परमार्थिक सत्ता स्वीकार की थी।
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| 9. | वेदांत दर्शन निर्विकल्प, निरुपाधि और निर्विकार ब्रह्म को ही सत्य मानता है।
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| 10. | तो फिर वह निरुपाधि ब्रह्म वेद ज्ञान को कैसे उत्पन्न करता है?
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