इस संदर्भ में अब ‘ निर्वाचकीय निज़ाम ' पर भी बात करने की ज़रूरत है.
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सभी राजनीतिक दलों और व्यावसायिक राजनीतिज्ञों ने अनुभव किया कि सत्त्मूलक राजनीति के खेल और निर्वाचकीय लड़ाईयों में सफलता पाने के लिए जातीय-सांप्रदायिक, कबाइली और भाषाई भेदभावों को बढ़ावा देना है!