रुधिर के निस्रवण के समय रुधिर प्रदाता को किसी प्रकार की संवेदना नहीं होती।
2.
फिर भी यह कहा जा सकता है कि हृद्रोग में लसीका का अवशोषण पूर्णतया न होने से वृक्करोग में, लसीका का निस्रवण (
3.
रुधिर का प्रवाह ठीक बना रहे, इसलिए रुधिर निस्रवण के समय रुधिरप्रदाता को मुट्ठी खोलने और बंद करने के लिए कहा जात है।
4.
वृक्कविकार में हृदयगत धमनी तनाव बढ़ने के कारण कोशिकाओं द्वारा होनेवाले अत्यधिक लसीका निस्रवण से जलशोथ उत्पन्न होता है और साथ साथ यदि हृद्रोग न हो तो शोथ सर्वप्रथम आँखों पर दिखाई देता है।