जीवन की इस संध्या में सरयू का सूना नील-लोहित तट है... जल पर बिखरा हुआ सूरज...
2.
' ' जब जागी तो उदर पर एक ऐसा ही नील-लोहित व्रण था जो बाद में चिह्न शेष रह गया..
3.
उसने उन्हें कोई उत्तर नहीं दिया, लेकिन आगे बढ़ता रहा और ज़ीने के चमकदार नील-लोहित काँच की सीढ़ियाँ उतर गया, और कांसे के मुख्य द्वारों से निकल कर वह अपने घोड़े पर सवार हो गया, और गिरजे की ओर बढ़ चला, नन्हा परिचर उसके पीछे-पीछे भाग रहा था ।