यह एक नृतत्वीय सत्य है कि जिन समाजों में मनुश्य और प्रकृति दो विरोधी सत्ताएँ नहीं हैं, जहाँ उनके परस्पर सम्बन्ध अधिक आत्मीय निकट और नैसर्गिक होते हैं, वहाँ अनुभूति और चिन्तन की भाशा में अन्तराल अधिक नहीं होता और उसकी मिथकीय संवेदनाएँ अधिक समृद्ध होती हैं।