आंतरिक संरचना के बारे में वे शायद गंभीर नहीं होते हैं तो फ़िर फ़ैशन के तौर पर हिंदी को कठिन बताकर उन पंडितम्मन्य लोगों की श्रेणी में शामिल हो जाते हैं जिन्हें हिंदी का ज्ञान न होते हुए भी ही शब्द संरचना तथा वाक्य विन्यास जैसे भाषा वैज्ञानिक पहलुओं पर आधिकारिक विचार व्यक्त्त करने का स्वाधिकार प्राप्त है।