इस रचना में पूँजीवादी सभ्यता की ऊसर भूमि में पथहीन और प्यासे व्यक्ति का चित्र है।
6.
सहसा जल-स्थल-आकाश सिहर उठे; एवं अकस्मात् विद्युत्दंत विकसित आंधी श्रृंखलाछिन्न उन्माद के समान पथहीन सुदूर वन के भीतर से भयावह चीत्कार करती हुई झपट पड़ी।
7.
देशभक्ति की राह भूलकर, नेतागण खुद में तल्लीन शासन की कुछ सुख सुविधाएँ, बना रहीं इनको पथहीन ऐसे दिग्भ्रम नेताओं को, सही सबक सिखलाना है भारत को खुशहाल बनाने, आज क्रांति फिर लाना है...