उसी प्रकार गुरू की भी स्वार्थी, परार्थी एवं परमार्थी तीन श्रेणियां होती हैं।
5.
फिर परार्थी कौन है? जिनकी हम परोपकारियों में, परार्थियों में गणना करते हैं।
6.
इसी प्रकार परार्थी गुरू तंत्र-मंत्र द्वारा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है लेकिन इस क्षणिक आकर्षण से शिष्य का जीवन अंधकार की ओर अग्रसर हो जाता है।
7.
व्यक्ति वैयक्तिक अपेक्षाओं से जुड़कर अनेक बार नितान्त व्यक्तिगत, एकेंद्रीय और स्वार्थी हो जाता है, वहीं वह वैक्तिक अपेक्षाओं के दायरे से बाहर आकर एक को अनेक के साथ तोड़कर, सत्-असत् का विचार करते हुए समष्टिगत भाव से समाज केंद्रीय या बहुकेंद्रीय होकर परार्थी हो जाता है।