साउण्ड डिसिजन ' देने के चक्कर में आज की आलोचना पर एक प्रकार का पाण्डित्य-प्रदर्शन हावी है.
3.
पाण्डित्य-प्रदर्शन कहकर या वेद-पुराण-आगम-निगम की खिल्ली उड़ाकर तथा षड्दर्शन को कालातीत कहकर सरसरी तौर पर खारिज नहीं किया जा सकता।
4.
बहरहाल, वृद्धावस्था के संदर्भ में मैंने जो बातें अब तक कहीं वह किसी पाण्डित्य-प्रदर्शन के लिए नहीं कही हैं, अपितु संदर्भ को अधिकाधिक रोचक एवं व्यापक बनाने की दृष्टि से यह सब कुछ कहा गया है।
5.
5. ‘ इस्क्रा ' और ‘ प्राव् दा ' के बुनियादी चरित्र के सम्बन्ध में मूल मुद्दे को हल्का (dilute) करते हुए और बहकाते हुए लम्बे-चौड़े उद्धरण के द्वारा आपने पाण्डित्य-प्रदर्शन की कोशिश की है।
6.
* आपने न केवल हमारी बातों को और ऐतिहासिक तथ्यों को भी भारी तोड़-मरोड़ के साथ प्रस्तुत किया है, बल्कि निहायत ग़लत और अप्रासंगिक ढंग से लम्बे उद्धरण पेश करके पाण्डित्य-प्रदर्शन करते हुए बहस को मूल प्रश्नों से भटकाने की कोशिश की है।
7.
दो बातें सब से ज़ियादा खटकीं [सिर्फ़ अपनी बात कहना चाहता हूँ, यह विमर्श का विषय नहीं] पहली तो यह कि उत्तम दोहे जिन से रचवाए गये-हम उन के श्रम और अच्छाइयों पर जितनी चर्चा कर रहे हैं उस से कभी-कभी सौ गुना ज़ियादा चर्चा ऐसे व्यक्तियों / दोहों की कमियों या फिर अपने पाण्डित्य-प्रदर्शन हेतु कर रहे हैं।
8.
मसलन, ख़ुद तथ्यों को तोड़ना-मरोड़ना हो तो पहले सामने वाले पर ही यह आरोप लगा दो ; ख़ुद गालियों की बौछार करनी हो तो पहले सामने वाले पर ही यह आरोप लगा दो ; या तो सर्वमान्य आम बातों की पुष्टि के लिए या फिर अप्रासांगिक ढंग से उद्धरणबाज़ी करके पाण्डित्य-प्रदर्शन करना हो तो पहले सामने वाले पर ही यह आरोप लगा दो ; स्वयं बहस को (” आगे बढ़ाने ” के नाम पर) मूल मुद्दे से दूर ले जाना हो तो पहले सामने वाले पर ही यह आरोप लगा दो।