भावानुभूति के साथ इस काव्य की अन्यतम विशेषता पादांत यमक अलंकार का प्रयोग है।
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भावानुभूति के साथ इस काव्य की अन्यतम विशेषता पादांत यमक अलंकार का प्रयोग है।
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आगे वैयाकरणों के प्रभाव से तथा कृष्ण यजुर्वेद के स्वाभाविक उच्चारण के उदाहरण से हम हृस्व स्वर का एकमात्रक तथा दीर्घ स्वर का द्विमात्रक उच्चार करने लगे, किंतु पादांत में स्वाभाविक ही जो द्विमात्रक उच्चारण होता है, उसे हमने नहीं बदला।