पितृ-तुल्य श्वसुर की चरण-धूलि लेते मानस का भी स्वर रूद्ध हो उठा था।
4.
पितृ-तुल्य पालक की आँखों में निराशा-आशंका गहराती देख उसने सहज-सधे स्वर में कहा था-” आप जो आदेश दें, मुझे स्वीकार होगा।
5.
इसी प्रकार सह्माद्रि से कृष्णा, गोदावरी, मलय पर्वत से कृतमाला आदि, महेंद्र पर्वत से पितृ-तुल्य, शुक्तिमंत से ऋषि कुलय इत्यादि नदियां जन्म लेकर प्रवाहित हो रही हैं।
6.
इसके विपरीत राजा को प्रजा के लिए पितृ-तुल्य कहा गया है, जो अपनी प्रजा का पालन-पोषण, संवर्धन, संरक्षण, भरण, शिक्षण इत्यादि वैसा ही करता है जैसा वह अपनी सन्तान का करता है।
7.
इसके विपरीत राजा को प्रजा के लिए पितृ-तुल्य कहा गया है, जो अपनी प्रजा का पालन-पोषण, संवर्धन, संरक्षण, भरण, शिक्षण इत्यादि वैसा ही करता है जैसा वह अपनी सन्तान का करता है।
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इसके विपरीत राजा को प्रजा के लिए पितृ-तुल्य कहा गया है, जो अपनी प्रजा का पालन-पोषण, संवर्धन, संरक्षण, भरण, शिक्षण इत्यादि वैसा ही करता है जैसा वह अपनी सन्तान का करता है।