पर आधुनिकता का पीछा करता हुआ भारत अपने रोल-मॉडेल के अनुसार खुद को ढालने की कोशिश में अपने पुरागत स्वभावों से विच्छिन्न होता जा रहा है।
2.
अर्चना वर्मा ' इन्हें इस बहुलताप्रेमी देश के समावेशी स्वभाव में विचित्र और विलक्षण आस्थाओं और अस्मिताओं के लिए भी जगह बना देने के पुरागत परम्परा' मानती हैं।
3.
इस बहुलताप्रेमी देश के तेजी से खोते हुए समावेशी स्वभाव में विचित्र और विलक्षण आस्थाओं और अस्मिताओं के लिए भी जगह बना देने की पुरागत परंपरा मौजूद रही है।
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अर्चना वर्मा ' इन्हें इस बहुलताप्रेमी देश के समावेशी स्वभाव में विचित्र और विलक्षण आस्थाओं और अस्मिताओं के लिए भी जगह बना देने के पुरागत परम्परा ' मानती हैं।
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इसी दृष्टिकोण से प्रेरित अर्चना वर्मा ' रसराज शृंगार ' की रीतिकालीन रसानुभूति को सकारात्मक बताती हैं और इस बात के लिए चिन्तित दीखती हैं कि आधुनिकता का पीछा करता हुआ भारत विचित्र और विलक्षण आस्थाओं-अस्मिताओं और पुरागत परम्पराओं से विच्छिन्न होता जा रहा है (इसमें लिंग-पूजा, योनि पूजा, पशुओं तक से सम्भोग के भित्ति-चित्रों के उत्कीर्णन आदि सभी शामिल हैं!)।
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इसी दृष्टिकोण से प्रेरित अर्चना वर्मा ' रसराज शृंगार ' की रीतिकालीन रसानुभूति को सकारात्मक बताती हैं और इस बात के लिए चिन्तित दीखती हैं कि आधुनिकता का पीछा करता हुआ भारत विचित्र और विलक्षण आस्थाओं-अस्मिताओं और पुरागत परम्पराओं से विच्छिन्न होता जा रहा है (इसमें लिंग-पूजा, योनि पूजा, पशुओं तक से सम्भोग के भित्ति-चित्रों के उत्कीर्णन आदि सभी शामिल हैं!) ।